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उत्तराखंड में बड़ा भूकंप आ सकता है! वैज्ञानिकों की चेतावनी: हिमालय में जमा हो रही है खतरे की ऊर्जा

देहरादून न्यूज़- हिमालयी क्षेत्र, विशेष रूप से उत्तराखंड, एक बड़े भूकंप की दहलीज पर खड़ा हो सकता है। यह चेतावनी देश के प्रमुख भूवैज्ञानिकों ने दी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि टेक्टोनिक प्लेटों के बीच घर्षण के चलते क्षेत्र में अत्यधिक ऊर्जा जमा हो रही है, और पिछले कुछ महीनों से महसूस किए जा रहे हल्के झटके उसी बड़े खतरे की आहट हो सकते हैं।

 

 

बीते जून में देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट और एफआरआई में देशभर के भूवैज्ञानिकों ने दो अहम विषयों पर मंथन किया—”अंडरस्टैंडिंग हिमालयन अर्थक्वेक्स” और “अर्थक्वेक रिस्क एसेसमेंट”। इन सम्मेलनों में विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि अगला बड़ा भूकंप 7.0 तीव्रता तक हो सकता है।

 

 

वाडिया इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. विनीत गहलोत के अनुसार, उत्तराखंड में टेक्टोनिक प्लेटों की गति ‘‘लॉक्ड’’ हो गई है, जिससे ऊर्जा का विसर्जन नहीं हो पा रहा और भूगर्भीय दबाव खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है।

🔍 भूकंप की चेतावनी के संकेत

नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी की रिपोर्ट बताती है कि पिछले 6 महीनों में उत्तराखंड में 22 बार 1.8 से 3.6 तीव्रता तक के भूकंप दर्ज किए गए। सबसे अधिक झटके चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और बागेश्वर जिलों में महसूस हुए हैं।

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विशेषज्ञ मानते हैं कि छोटे झटकों की संख्या इतनी नहीं है कि यह कहा जा सके कि भूगर्भीय ऊर्जा निकल चुकी है। शोध में पाया गया है कि बड़े भूकंप से पहले अक्सर हल्के भूकंपों की संख्या बढ़ जाती है।

📉 मैदान या पहाड़: कहां होगा ज्यादा नुकसान?

वाडिया की कार्यशाला में वैज्ञानिकों ने बताया कि यदि समान तीव्रता का भूकंप मैदान और पहाड़ दोनों क्षेत्रों में आता है, तो मैदानी इलाकों में नुकसान अधिक होगा। इसका कारण है कि हिमालय क्षेत्र में भूगर्भ की गहराई लगभग 10 किमी तक होती है, जहां से बड़े भूकंप उत्पन्न होते हैं। यही वजह थी कि 2015 में नेपाल में आए भूकंप से अपेक्षाकृत कम नुकसान हुआ क्योंकि वह अधिक गहराई में आया था।

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🧭 भविष्यवाणी क्यों है मुश्किल?

भूकंप की भविष्यवाणी के तीन पहलू होते हैं—कब, कहां और कितनी तीव्रता का आएगा। वैज्ञानिक मानते हैं कि भूकंप कहां आ सकता है, इसका आकलन संभव है, लेकिन कब और कितना तीव्र होगा, यह तय कर पाना अब भी मुश्किल है।

 

 

फिलहाल उत्तराखंड में दो जीपीएस स्टेशन लगाए गए हैं ताकि यह जाना जा सके कि किस क्षेत्र में सबसे अधिक ऊर्जा जमा हो रही है, लेकिन सटीक आकलन के लिए अधिक संख्या में जीपीएस की जरूरत है।

 

🧱 देहरादून की जमीन की मजबूती का होगा परीक्षण

हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए केंद्र सरकार ने देहरादून समेत कुछ शहरों का चयन किया है। यहां की चट्टानों की बनावट और मोटाई का सीएसआईआर बेंगलूरू द्वारा अध्ययन किया जाएगा, ताकि जमीन की मजबूती का पता लगाया जा सके।

 

📲 सेंसर और मोबाइल अलर्ट से मिलेगी चेतावनी

राज्य के 169 स्थानों पर सेंसर लगाए गए हैं, जो 5.0 तीव्रता से अधिक के भूकंप से 15-30 सेकेंड पहले चेतावनी दे सकते हैं। लोगों को मोबाइल ऐप ‘भूदेव’ के जरिए तत्काल अलर्ट मिलेगा।

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🗨️ वैज्ञानिक क्या कहते हैं?

> “उत्तराखंड में प्लेटें लॉक्ड हो चुकी हैं। यह स्थिति भूकंप की आशंका को और गंभीर बनाती है।”
— डॉ. विनीत गहलोत, निदेशक, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी

 

 

 

> “हमारी कोशिश है कि सेंसरों और डेटा की मदद से चेतावनी प्रणाली को और बेहतर बनाया जाए।”
— विनोद कुमार सुमन, आपदा सचिव, उत्तराखंड

 

> “मध्य और पूर्वोत्तर हिमालय में अत्यधिक ऊर्जा एकत्र हो चुकी है, जो कब निकलेगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।”
— डॉ. इम्तियाज परवेज, वरिष्ठ वैज्ञानिक, सीएसआईआर, बेंगलूरू

 

निष्कर्ष: उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्र में बड़ा भूकंप अब केवल संभावना नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी बन चुकी है। वैज्ञानिकों की सलाह है कि सरकार और नागरिक, दोनों को इस खतरे के लिए पहले से तैयारी करनी चाहिए।