उत्तराखंड में एक और बड़ा वन घोटाला: मुनस्यारी इको टूरिज्म प्रोजेक्ट में 1.63 करोड़ का घालमेल, इस वरिष्ठ IFS अधिकारी पर लगे गंभीर आरोप

देहरादून न्यूज़– उत्तराखंड के वन विभाग में एक और बड़ा घोटाला सामने आया है, जो कार्बेट घोटाले की तर्ज पर मुनस्यारी में हुआ है। इको टूरिज्म के नाम पर 1.63 करोड़ रुपये का सरकारी धन अनियमित तरीके से खर्च किया गया। इस मामले में वरिष्ठ भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी डॉ. विनय कुमार भार्गव का नाम मुख्य आरोपी के रूप में सामने आया है, जो वर्तमान में पश्चिमी वृत्त हल्द्वानी के वन संरक्षक हैं।
डॉ. भार्गव पर वित्तीय अनियमितताओं, बिना टेंडर निर्माण सामग्री की खरीद और निजी संस्थाओं को अनुचित लाभ पहुंचाने जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। विभाग ने इस प्रकरण की जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी है, जिसमें सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से जांच की सिफारिश की गई है। साथ ही शासन ने उन्हें 15 दिन के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है, अन्यथा अनुशासनात्मक और कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी गई है।
विस्तृत जांच रिपोर्ट:
इस पूरे घोटाले की जांच वरिष्ठ IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी द्वारा अगस्त से दिसंबर 2024 के बीच की गई थी। जांच के दो चरणों में 700 पृष्ठों की रिपोर्ट तैयार की गई, जिसे दिसंबर 2024 और जनवरी 2025 में प्रधान मुख्य वन संरक्षक (हाफ) को सौंपा गया। मार्च 2025 में यह रिपोर्ट शासन को भेजी गई और जून 2025 में मुख्यमंत्री द्वारा अनुमोदित की गई। रिपोर्ट में पीएमएलए के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज करने की भी अनुशंसा की गई है।
डॉ. भार्गव पर पहले भी लगे थे आरोप:
वर्ष 2015 में जब वे नरेंद्रनगर में डीएफओ के पद पर थे, तब भी उन पर भारी वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप लगे थे, लेकिन उन्हें अनुभव की कमी के आधार पर दोषमुक्त कर दिया गया था। लगातार प्रभावशाली पदों पर तैनाती और राजनीतिक संरक्षण मिलने की चर्चाएं लंबे समय से चल रही हैं। बताया जा रहा है कि डॉ. भार्गव की शादी एक कैबिनेट मंत्री की भतीजी से हुई है।
घोटाले के मुख्य बिंदु:
1. बिना अनुमति संरचना निर्माण:
मुनस्यारी के आरक्षित वन क्षेत्र में वर्ष 2019 में डोरमेट्री, 10 वीआईपी इको हट्स, ग्रोथ सेंटर आदि का निर्माण बिना केंद्रीय अनुमति के कराया गया।
2. बिना टेंडर निर्माण सामग्री की खरीद:
करोड़ों की सामग्री बिना किसी सार्वजनिक निविदा प्रक्रिया के खरीदी गई और एक निजी संस्था को ठेका दिया गया।
3. अवैध एमओयू:
ईडीसी पातलथौड़, मुनस्यारी के साथ बिना सक्षम अनुमति के एमओयू किया गया, जिसके तहत इको हट्स की आय का 70% हिस्सा निजी संस्था को दे दिया गया। सूत्रों के अनुसार यह संस्था एक विधायक से जुड़ी है।
4. वन संरक्षण अधिनियम 1980 का उल्लंघन:
सीमेंट और मोर्टार से बने स्थायी ढांचों के निर्माण से पूर्व केंद्र सरकार की अनुमति नहीं ली गई, जो कि अधिनियम का सीधा उल्लंघन है।
5. फायरलाइन में फर्जीवाड़ा:
जहां योजना में 14.6 किमी फायरलाइन का ही प्रावधान था, वहां 90 किमी दिखाकर ₹2 लाख का व्यय दर्शाया गया।
अन्य विवादास्पद तथ्य:
फिल्म निर्माता शेखर कपूर द्वारा इन इको हट्स में ठहरने की पुष्टि।
इको हट्स से जुड़ी संस्था का ऑडिट 2020–21 से 2023–24 तक जैसलमेर की एक फर्म से कराया गया, जो कि जांच के दायरे में है।
यह मामला उत्तराखंड में सरकारी योजनाओं के दुरुपयोग और उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार की गंभीर बानगी पेश करता है। अब देखना यह होगा कि शासन इस पर क्या कड़ा कदम उठाता है और क्या सीबीआई तथा ईडी जांच शुरू होती है या नहीं।
