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देहरादून- CAG रिपोर्ट से सामने आई उत्तराखंड कर्मकार बोर्ड की धांधली, साइकिल और टूलकिट गायब, बिना मंजूरी खर्च कर डाले 607.09 करोड़

  • वर्ष 2017-18 से 2021-20 के बीच बोर्ड ने सरकार से नहीं ली स्वीकृति
  • 10.82 करोड़ रुपए से खरीदी गई 37 हजार से अधिक साइकिलों में से सिर्फ छह हजार का वितरण
  • कैग की रिपोर्ट में उजागर हुई भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड की धांधली

 

देहरादून न्यूज़- CAG Report: जिस भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड का गठन निर्माण से जुड़े श्रमिकों के कल्याण के लिए किया गया है, वह सिर्फ अपने ‘कल्याण’ में लगा है। वर्ष 2017-18 से वर्ष 2021-22 के बीच बोर्ड ने अपने व्यय और प्राप्तियों को दर्शाते हुए बजट तैयार ही नहीं किया। जिसके चलते बोर्ड ने सरकार से स्वीकृति भी नहीं ली और 607.09 करोड़ रुपए खर्च भी कर डाले।

 

बोर्ड को निर्माण योजनाओं/कार्यों की लागत के अनुसार उपकर प्राप्त होता है, जिसे श्रमिकों के कल्याण में खर्च किए जाने का प्राविधान है। लेकिन, बोर्ड ने न तो उपकर के आकलन के लिए कोई तंत्र विकसित किया और न ही योजनाओं के भौतिक और वित्तीय लक्ष्य निर्धारित किए। श्रमिकों के पंजीकरण से लेकर उनके कल्याण की योजनाओं में खर्च से लेकर विभिन्न स्तर पर मनमर्जी से बजट ठिकाने लगाया गया।

 

बोर्ड के कार्यों में बड़े स्तर पर गड़बड़ी

कर्मकार कल्याण बोर्ड में बरती गई गंभीर अनियमितताओं को भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में उजागर किया गया है।

 

 

कर्मकार कल्याण बोर्ड की दशा दिशा बताती यह रिपोर्ट 31 मार्च 2022 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष और इससे पहले के वर्षों की प्रगति पर आधारित है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में बोर्ड के कार्यों में बड़े स्तर पर गड़बड़ी पकड़ी हैं।

 

बोर्ड ने संबंधित चार वर्षों में श्रमिकों के लिए 32.78 करोड़ रुपए से 83 हजार 560 साइकिलें खरीदी थीं। जिसमें से 10.82 करोड़ रुपए की 31 हजार 645 साइकिलों का कहीं पता नहीं चल पाया। क्योंकि, जो 37 हजार 665 साइकिलें देहरादून जिले के लिए खरीदी गई थी। उनमें से उप श्रम आयुक्त सिर्फ 6020 साइकिलों को प्राप्त करना दर्शाया है। इसके अलावा जिन साइकिलों को बांटा जाना दिखाया, उनमें किसी भी श्रमिक से उसकी प्राप्ति नहीं ली गई। जिससे वितरण को पुष्ट नहीं किया जा सका।

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बोर्ड में की गई खरीद में घपलेबाजी का सिर्फ यही अकेला उदाहरण नहीं है। बोर्ड 33.23 करोड़ रुपए से 22 हजार 426 टूलकिट की भी खरीद की। हैरानी की बात है कि 22 हजार 255 टूलकिटों का कहीं पता नहीं चल पाया। उप श्रमायुक्त देहरादून ने ना के बराबर 171 टूलकिटों की प्राप्ति और वितरण को स्वीकार किया।

 

ऐसे किया फर्जीवाड़ा

साइकिल और टूलकिट दोनों की मामलों में वितरण आवेदन के आधार पर किया जाना था, लेकिन बोर्ड ने इसके लिए आवेदन भी प्राप्त करने जरूरी नहीं समझे। इसके अलावा करीब 63 करोड़ रुपए की राशन किट की खरीद और वितरण भी दिखाया।

 

 

कैग ने पाया कि राशन किट वितरण की खरीद सरकार के अनुमोदन के बिना की गई और जिन श्रमिकों को इसे बांटा जाना दिखाया गया, उनसे प्राप्ति भी नहीं ली गई। साथ ही गैर पंजीकृत श्रमिकों को भी किट प्रदान की गई। यह स्थिति तब आई जब केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज में लाकडाउन के दौरान 80 करोड़ जनसंख्या को राशन उपलब्ध कराया था।

 

 

डीबीटी का उपयोग किए बिना 240 करोड़ खर्च, अपात्रों को भी लाभ

कैग ने पाया कि कर्मकार कल्याण बोर्ड ने जिन श्रमिकों को आर्थिक सहायता प्रदान की है, उसने भुगतान के लिए डीबीटी ढांचे का उपयोग नहीं किया गया। जबकि बोर्ड ने सहायता के रूप में 240 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि खर्च कर डाली।

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यह बात भी सामने आई कि 215 करोड़ रुपए 5.47 लाख से अधिक अपात्रों को वितरित किए गए। क्योंकि, इनका पंजीकरण ही नहीं किया गया था। इस पर टिप्पणी करते हुए कैग ने कहा कि यह लाभ सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरुद्ध है। सुप्रीम कोर्ट ने 19 मार्च 2018 के निर्णय में स्पष्ट किया था कि बिना पंजीकरण लाभ का हक नहीं दिया जा सकता है।

 

 

वृद्धावस्था और दिव्यांग पेंशन में आवेदन ही नहीं

नियमित रूप से पंजीकृत श्रमिकों के लिए 60 वर्ष की उम्र के बाद और दुर्घटना, बीमारी के दौरान उपजी दिव्यांगता/अक्षमता के लिए पेंशन का प्राविधान किया गया है। लेकिन, बेहद हैरानी की बात है कि दीर्घकालिक और स्थाई लाभ वाली इस योजना में बोर्ड को कोई आवेदन ही प्राप्त नहीं हुआ है।

 

 

दूसरी तरफ कंबल वितरण, टूलकिट, साइकिल और राशन किट जैसी सहायता में खूब खर्च किया गया है और उनमें तमाम गड़बड़ी भी पकड़ी गई हैं। यह स्थिति बताती है कि कर्मकार कल्याण बोर्ड किसके कल्याण में जुटा है।

 

 

आइटी कार्यों में पंजीकृत एजेंसी से कराई साइकिल और टूलकिट खरीद

कर्मकार कल्याण बोर्ड की कारगुज़ारी का यह भी नायब उदाहरण है कि साइकिल, टूलकिट और राशन किट जैसी खरीद के लिए ऐसी एजेंसी का चयन किया गया, जिनका पंजीकरण आइटी सेवाओं के लिए था। यह खरीद आइटीआइ लि. और टीसीआइएल लि. से कराई गई और दोनों कंपनी आइटी कार्यों में पंजीकृत हैं। इन तमाम खरीद के लिए कंपनियों ने सेंटेज के रूप से छह करोड़ रुपए से अधिक की राशि भी प्राप्त की।

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उपकर वसूली में भी हीलाहवाली

कैग ने जांच में पाया कि भवन और अन्य निर्माण कार्यों के दौरान जो उपकर वसूल किया जाता है, उसमें भी हीलाहवाली बरती जा रही है। परीक्षण के दौरान कैग ने देहरादून और ऊधम सिंह नगर के कार्यों/योजनाओं आदि की जांच की।

 

 

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक एमडीडीए देहरादून में ही 13.73 करोड़ रुपए की कम वसूली की गई है। इसी तरह निर्माण खंड देहरादून ने ठेकदारों के भुगतान के दौरान 31 लाख रुपए की कटौती नहीं की। उपकर वसूली के लिए निर्माण के आकार/लागत के हिसाब से गणना की जाती है।

 

 

इन गणना में कमी के चलते एमडीडीए और जिला विकास प्राधिकरण ऊधम सिंह नगर ने 28.77 करोड़ रुपए की कम वसूली की। साथ ही उपकर के हस्तांतरण में भी विलंब पाया गया। कुछ प्रकरण ऐसे भी पर गए हैं, जिसमें करोड़ों रुपए का हिसाब नहीं मिल रहा है।

 

 

सैंपल जांच में गतिमान थे 17 हजार से अधिक निर्माण, पंजीकरण एक

देहरादून और ऊधम सिंह नगर की सैंपल जांच में पाया गया कि कुल 17 हजार 655 निर्माण कार्य गतिमान थे। इसके बाद भी इन्हें कर्मकार बोर्ड में विधिवत पूंजीकृत नहीं किया गया। जिसके चलते उपकर वसूली बाधित हुई और प्रक्रिया विलंब से शुरू की गई। जबकि स्पष्ट है कि सरकारी कार्यों में संबंधित सहायक अभियंता पंजीयन अधिकारी होंगे।

 

 

जांच के दौरान कार्य पंजीकरण का सच

सैंपल इकाई कार्य पंजीकरण स्थिति
एमडीडीए 15104 01
जिला विकास प्राधिकरण यूएसएन 16501 00
लोनिवि निर्माण खंड खटीमा 215 00
लोनिवि निर्माण खंड देहरादून 208 00
लोनिवि निर्माण खंड ऋषिकेश 325 00
पेयजल निगम यूएसएन 153 00