सोशल मीडिया में लाइक्स और कमेंट की दौड़ में युवाओं का खोता मानसिक स्वास्थ्य

बदलती जीवनशैली और आभासी दुनिया की चकाचौंध ने युवाओं को तेजी से मानसिक बीमारियों की ओर धकेल दिया है। यह समस्या अब केवल व्यक्तिगत नहीं रही, बल्कि एक गंभीर सामाजिक चुनौती बन चुकी है। यह कहना है लखनऊ निवासी मनोचिकित्सक डॉ. रुचि तिवारी का, जो रविवार को नैनीताल पहुंचीं और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर खास बातचीत की।
डॉ. तिवारी के अनुसार 16 से 26 वर्ष की युवतियां मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बोझ सबसे ज्यादा झेल रही हैं। पढ़ाई और कॅरिअर की प्रतिस्पर्धा के चलते वे अधिक तनाव में रहती हैं। ‘जेन-जी’ पीढ़ी में सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग हो रहा है, जिसके कारण दिखावटी लाइक्स और कमेंट्स के दबाव में युवतियां अवसाद और तनाव की चपेट में आ रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट भी यही बताती है कि महिलाएं मानसिक तनाव और अवसाद से पुरुषों की तुलना में अधिक प्रभावित होती हैं।
सोशल मीडिया का प्रभाव
मनोचिकित्सक ने बताया कि युवा वर्ग सोशल मीडिया पर दूसरों की फ़िल्टर की हुई ज़िंदगी देखकर अपनी तुलना करने लगते हैं। इससे उनमें असुरक्षा और हीनभावना बढ़ती है, जो मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालती है। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का गहरा संबंध होता है, लेकिन आजकल जंक फूड का अधिक सेवन, देर रात तक जागना, नींद की कमी और व्यायाम की कमी युवाओं को शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर बीमार बना रही है।
ऐसे करें पहचान
लगातार उदासी में रहना, चिड़चिड़ापन और थकान महसूस होना तनाव और अवसाद के प्रमुख लक्षण हैं। कई बार महिलाएं इन्हें सामान्य समझकर नजरअंदाज कर देती हैं, जिससे स्थिति गंभीर हो जाती है।
क्या करें
सोशल मीडिया के इस्तेमाल का समय निर्धारित करें।
परिवार और दोस्तों से खुलकर बातचीत करें।
संतुलित और पौष्टिक आहार लें।
नियमित रूप से व्यायाम करें।

