उत्तराखण्ड

अन्तराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर हल्द्वानी वन प्रभाग ने स्कूली बच्चों व स्थानीय ग्रामिणों एवं जन प्रतिनिधियों के साथ मानकर दिया पर्यावरण रक्षा का संदेश

अन्तराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस 22 मई 2024 को
प्रभागीय वनधिकारी, श्री आर0सी0 काण्डपाल एवं उप-प्रभागीय वनाधिकारी नन्धौर/शारदा श्रीमती ममता चंद से प्राप्त दिशा-निर्देशों के क्रम आज दिनांक 22 मई 2024 को अन्तराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर हल्द्वानी वन प्रभाग, हल्द्वानी में सभी पांचों राजियों में अन्तराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस स्कूली बच्चों व स्थानीय ग्रामिणों एवं जन प्रतिनिधियों के साथ बनाया गया।

 

 

इस अवसर पर उप-प्रभागीय वनाधिकारी नन्धौर/शारदा श्रीमती ममता चंद ने बताया कि पृथ्वी पर पाए जाने वाले पौधों, जानवरों, कवकों और सूक्ष्मजीवों सहित जीवन अन्य सभी रूपों की विस्तृत श्रृंखला में काफी अधिक विविधता पाई जाती है, इसी विविधता को जैव विविधता कहा जाता है। वन क्षेत्राधिकारी, नन्धौर, श्री भूपाल सिंह मेहता ने जानकारी देते हुए कहा कि जीवन के अलावा इसमें उस पर्यावरण को भी शामिल किया जाता है, जो इन जीवों का आवास है। यह हमारे ग्रह के स्वास्थ्य और कार्यक्षमता का एक महत्वपूर्ण पहलू है। जैव विवधता पारिस्थितिक तंत्र को बरकार रखने में दवा का काम कर इसे स्वस्थ्य बनाए रखता है। यह हमें प्राकृतिक ‘सांस्कृतिक मूल्य‘ भी प्रदान करता है।

 

 

वन क्षेत्राधिकारी, छकाता एवं डाण्डा श्री प्रदीप पन्त ने कहा कि जैव विविधता को आनुवंशिक, प्रजाति विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के विविधता में वर्गीकृत किया गया है। जैव विविधता प्राकृतिक दुनिया और पृथ्वी पर जीवन के स्वास्थ्य में अद्वितीय भूमिका निभाता है, लेकिन जीवों के प्राकृतिक आवास के विनाश और जलवायु परिवर्तन जैसे नकारात्मक खतरों से कई प्रजातियों के विलुप्ति का संकट पैदा हुआ है। कई तो विलुप्त हो गए है या होने के करीब है इसलिए जैव विविधता के संरक्षण का सामूहिक प्रयास जरुरी है। वन क्षेत्राधिकारी, जौलासाल, श्री सुनील शर्मा ने बताया कि बढ़ते प्रदुषण, बढ़ती जन आबादी, प्रकृति में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप, घटते वन और मानव द्वारा अन्य जीवों के आवास के अतिक्रमण से कई जीव-जंतुओं, पौधों, पक्षी और सूक्ष्मजीवों के अस्तित्व पर गहरा संकट पड़ा है, इससे धरती के जैविक विविधता को नुकसान हुआ है और इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है। वन क्षेत्राधिकारी, शारदा, श्री पूरन चन्द्र जोशी ने कहा कि पृथ्वी पर जीवन और जीवधारियों पर आए इस संकट को ही जैव विविधता संकट कहा जाता है। जैव विविधता को तीन स्तरों में विभाजित किया जा सकता है. ये तीनों मिलकर पृथ्वी पर जीवन के संभावनाओं को साकार करते है।

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1. आनुवंशिक विविधता।
2. प्रजाति विविधता।
3. पारिस्थितिकी तंत्र विविधता।
1. आनुवंशिक विविधता

एक प्रजाति के भीतर वंशानुगत जानकारी (जीन) की बुनियादी इकाइयों में विविधता को आनुवंशिक विविधता कहा जाता है। जीनोम किसी जीव की आनुवंशिक सामग्री (यानी, डीएनए) का पूरा सेट है। यह एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में हस्तांतरित होता है। मतलब कोई संतान अपने माता-पिता से इस गुण को प्राप्त करता है। इसी के कारण एक जीव का अगला पीढ़ी अपने पिछले पीढ़ी के समान गुण का होता है। किसी प्रजाति के दो जीवों के गुणों, बनावट, खानपान व व्यवहार में अंर्त का कारण भी आनुवंशिक विविधता ही है। इसी कारण दो मनुष्यों के चेहरे, रंगरूप व गुणों में अंतर होते है. वास्तव में, आनुवंशिक विविधता ही जैव विविधता का मूल स्त्रोत है और विभिन्न प्रजातियों का आधार है। एक ही प्रजाति के पक्षियों के स्वर, पंखों के रंग, सेब और अन्य खाद्य पदार्थों के रंग, स्वाद और बनावट इत्यादि अलग-अलग होने का कारण आनुवंशिक विविधता ही है।

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आनुवंशिक विविधता यह निर्धारित करता है कि कोई जीव अपने पर्यावरण के प्रति किस हद तक अनुकूलन कर सकता है, धरती पर जलवायु परिवर्तन के इतिहास को देखते हुए, यह अनुकूलन उक्त जीव के अस्तित्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन जानवरों के सभी समूहों में आनुवंशिक विविधता समान नहीं होती है। आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करने के लिए, एक प्रजाति की विभिन्न आबादी को संरक्षित किया जाना चाहिए। इस तरह बदलते पर्यावरण और मौसम के कारण आनुवंशिक गुण व जीन प्रकृति के लिए महत्वपूर्ण हो जाते है। इसी को ध्यान में रखते हुए विश्व में जीनों को संरक्षित करने के प्रयास भी किए जा रहे है। ग्लोबल जीनोम इनिशिएटिव एक ऐसा ही प्रोजेक्ट है. जीनोम के नमूनों को एकत्रित व संरक्षित कर पृथ्वी की जीनोमिक जैव विविधता को बचाना ही इसका लक्ष्य है।

 

2. प्रजातीय विविधता
प्रजाति विविधता से तात्पर्य किसी पारिस्थितिक तंत्र में विभिन्न प्रजातियों की विविधता से है। दो प्रजाति समान नहीं होते है, जैसे इंसान और चिम्पांजी दोनों के जीन में 98.4 प्रतिशत का समानता होता है। लेकिन दोनों अलग-अलग जीवधारी है। यहीं अंतर प्रजति विविधता कहलाता है। दूसरे शब्दों में, किसी प्रजाति की आबादी के भीतर या किसी समुदाय की विभिन्न प्रजातियों के बीच पाई जाने वाली परिवर्तनशीलता ही प्रजातीय विविधता है। प्रजाति किसी जीव का बुनियादी इकाई होता है, जिसका उपयोग जीवों को वर्गीकृत करने के लिए किया जाता है। इसका इस्तेमाल जैव विविधता का वर्णन करने में सबसे अधिक होता है। इसी से किसी प्रजाति के समुदाय के समृद्धि, प्रचुरता और पर्यावरण से अनुकूलता का पता चलता है। यदि प्रजातियों की संख्या और प्रकार के साथ ही प्रति प्रजाति अधिक आबादी से जैविक विविध परिस्थिति का पता चलता है।

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प्रजातीय विविधता को 0 से एक के बीच मापा जाता है। 0 सबसे अधिक विविधता को दर्शाता है, जबकि 1 सबसे कम विविधता को दर्शाता है। यदि किसी परिस्थिति में प्रजातीय विविधता 1 है तो माना जाता है कि उक्त जगह सिर्फ एक प्रजाति निवास कर रहा है। किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में प्रजातीय विविधता कायम होना उसके सुरक्षा के लिए नितांत जरुरी है।उदाहरण के लिए, नाइट्रोजन चक्र में बैक्टीरिया, पौधे और केंचुए भाग लेते है. इससे मिटटी को उर्वरता प्राप्त होता है. यदि इनमें कोई एक जीव विलुप्त हो जाए तो नाइट्रोजन चक्र समाप्त हो जाएगा. इससे मिटटी के उर्वरता के साथ-साथ मानव खाद्य श्रृंखला भी प्रभावित होगी।

 

3. पारिस्थितिकीय विविधता
पारिस्थितिकी तंत्र जीवन के जैविक घटकों का एक समूह है जो आपस में और पर्यावरण के निर्जीव या अजैविक घटकों के साथ परस्पर सम्बन्धित होते है। मतलब, पारिस्थितिकी तंत्र जीवों और भौतिक पर्यावरण का एक साथ पारस्परिक क्रिया है। पारिस्थितिकी तंत्र के उदाहरण में ग्रेट बैरियर रीफ, मकड़ी का जाल, तालाब, पहाड़, रेगिस्तान, समुद्र तट और नदी शामिल है. यहां अलग-अलग प्रकार के जीव निवास करते है। इसलिए पारिस्थितिक तंत्र विविधता, आवासों की विविधता है, जहां जीवन विभिन्न रूपों में पाए जाते है. ऐसे स्थानों पर खास प्रकार के जीव स्वाभाविक रूप से पाए जाते है। जैसे रेगिस्तान में कैक्टस, ऊँचे पर्वतों पर शंकुधारी वृक्ष, तालाबों में जलकुम्भी व मीठे जल की मछली इत्यादि, पारिस्थितिकीय विविधता का उदाहरण है।