उत्तराखण्ड

नैनीताल- तो क्‍या जाएगी उत्तराखंड के 3 हजार से अधिक शिक्षकों की नौकरी? हाई कोर्ट के एक फैसले से हड़कंप

  • जम्मू-कश्मीर, रुहेलखंड व चौधरी चरण सिंह विवि मेरठ आदि की बीएड डिग्री वाले अधिक
  • निर्धारित योग्यता नहीं है तो शिक्षक के रूप में नियुक्ति के पात्र नहीं : हाई कोर्ट

नैनीताल न्यूज़– उत्तराखंड में करीब तीन हजार से अधिक शिक्षकों के शैक्षणिक दस्तावेज फर्जी होने का संदेह है। जाली दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त ये शिक्षक बच्चों के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं। इनमें से अधिकांश शिक्षकों ने जम्मू-कश्मीर, रुहेलखंड विश्वविद्यालय, चौधरी चरण सिंह विवि मेरठ सहित अन्य विवि से शैक्षणिक दस्तावेज व बीएड की डिग्री फर्जी तरीके से हासिल की हैं।

 

सरकार की ओर से गठित विशेष जांच दल (एसआइटी) अब तक जांच के बाद 84 शिक्षकों के दस्तावेजों को फर्जी साबित कर चुका है। सरकार ने ऐसे 52 शिक्षकों को बर्खास्त भी कर दिया है। हाई कोर्ट ने दो दर्जन से अधिक बर्खास्त शिक्षकों की सेवा में बहाली तथा ब्याज सहित बकाया वेतन व अन्य सेवा लाभ प्रदान करने की मांग से संबंधित याचिकाओं को खारिज कर सरकार को बड़ी राहत दी है।

 

कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट कहा है कि कोई भी व्यक्ति, जिसके पास नेशनल काउंसिल आफ टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) की निर्धारित योग्यता नहीं है, वह शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र नहीं है। ऐसे अयोग्य व्यक्ति की नियुक्ति यदि प्राधिकारियों की ओर से गलती के कारण की गई है तो शुरू से ही अमान्य हो जाएगी और इस प्रकार नियुक्त व्यक्ति को कोई लाभ नहीं मिलेगा।

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रुद्रप्रयाग के विक्रम सिंह नेगी को अक्टूबर 2005 में जिला शिक्षा अधिकारी बेसिक ने नियुक्ति दी। दस्तावेज फर्जी मिलने की शिकायत पर जांच के बाद 14 अक्टूबर 2022 के आदेश से सेवाएं समाप्त कर दी गईं। जिसे याचिका में चुनौती दी गई है। शिकायत प्राप्त हुई थी कि नियुक्ति के समय प्रस्तुत की गई बीएड की डिग्री फर्जी है। डिप्टी बीइओ जखोली ने उसका बीएड अंकपत्र सत्यापन के लिए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ भेजा। विवि ने उत्तर दिया कि अंकपत्र विश्वविद्यालय से जारी नहीं किया गया है।

 

 

विक्रम ने कथित रूप से विश्वविद्यालय की ओर से जारी एक लिफाफा प्रस्तुत किया, जिसमें विवि ने उसकी मार्कशीट सत्यापित की थी। यह मामला एसआइटी को भेजा तो अधिकारी ने बीएड अंकपत्र व डिग्री सत्यापन के लिए विश्वविद्यालय का दौरा किया। 25 मई 2018 को विवि ने पत्र जारी कर बताया कि विश्वविद्यालय के नामांकन और गोपनीय रिकार्ड के अनुसार अंकपत्र व डिग्री नहीं हैं।

 

 

एसआइटी निरीक्षक की रिपोर्ट के आधार पर शिक्षक को निलंबित करते हुए 20 जुलाई 2018 को उसे आरोप पत्र जारी किया गया। संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर 28 अगस्त 2018 को सेवा समाप्त कर दी गई। इन शिक्षकों की भी याचिका हुई खारिज अतुल कुमार, रामकिशोर, चंद्रपाल सिंह, संग्राम सिंह, पूनम धीमान, नीलम सैनी, साकिंदर कुमार, राजवीर सिंह, राजीव यादव, सरिता मेवाड़ी, काकुली मंडल, मखान मंडल, सुरेंद्र चंद्र, माया बिष्ट, अरविंद कुमार, कैलाश लाल, अनीता कुमार, लक्ष्मण लाल, महेश चंद्र, भावना, ओम कुमार, राजू लाल, केपी भट्ट, अनिल कुमार आदि।

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हाई कोर्ट ने फर्जी दस्तावेजों के जरिये नियुक्त सरकारी शिक्षकों की 26 याचिकाओं को खारिज करते हुए सरकार की ओर से की गई बर्खास्तगी कार्रवाई को सही ठहराया है। कार्रवाई के बाद ये शिक्षक धोखाधड़ी के आरोपों का सामना कर रहे हैं। इन शिक्षकों ने अपनी बर्खास्तगी को कोर्ट में चुनौती देते हुए आरोप लगाया था कि उनके मामलों की जांच उचित तरीके से नहीं की गई है।

 

 

हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने रुद्रप्रयाग में नियुक्त हुए शिक्षक विक्रम सिंह नेगी व अन्य की याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। 2020 में फर्जी दस्तावेज पेश करके बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने राज्य सरकार को मामले की गहनता से जांच करने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद सरकार की ओर से इन शिक्षकों के शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की जांच को स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआइटी) का गठन किया था।

 

 

एसआइटी जांच के दौरान यह भी पता चला कि 26 जालसाजों में से दो ने शिक्षक बनने के लिए एससी-एसटी का फर्जी जाति प्रमाण पत्र भी पेश किया था। जाली दस्तावेजों के आधार पर ये सहायक अध्यापक प्राथमिक के पद पर 2005 और उसके बाद नियुक्त हुए थे। इसमें से अधिकांश ने नियुक्ति से संबंधित दस्तावेजों में उत्तर प्रदेश के मेरठ और आगरा के विश्वविद्यालयों से बीएड की डिग्री संलग्न की थी। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत ने बताया कि राज्य में अब तक 52 ऐसे शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया गया है। 17 अन्य को नोटिस जारी किए गए हैं।

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याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने कार्रवाई को गलत बताते हुए कहा कि अनुशासनात्मक जांच राज्य कर्मचारियों पर लागू अनुशासन और अपील नियमों के अनुसार नहीं की गई थी। जांच में कुछ खामियां थीं। हाई कोर्ट ने याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं ने व्यक्तिगत ज्ञान के आधार पर यह बयान देने का साहस नहीं दिखाया है कि नियुक्ति पाने के लिए प्रस्तुत सभी शैक्षिक प्रमाण पत्र वास्तविक हैं।

 

 

याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति अधिकारियों की ओर से किसी गलती के कारण नहीं बल्कि उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए फर्जी शैक्षणिक प्रमाण पत्रों के कारण हुई थी। उनकी सेवाओं को समाप्त करने के लिए दी गई चुनौती अस्थिर है। कोर्ट के इस आदेश से फर्जी शिक्षकों का फिर से सेवा में वापसी के रास्ता फिलहाल बंद हो गया है।