उत्तराखंड- फोटो खिंचवाकर चले गए नेता, अब नहीं कोई हाल पूछने वाला — हड़बाड़ के पीड़ितों की सिसकती हकीकत
अगस्त में बागेश्वर जिले के जाख-हड़बाड़ गांव में आई अतिवृष्टि ने नौ परिवारों के घर, खेत और बगीचे निगल लिए। शुरू में नेताओं और अधिकारियों की आवाजाही रही, लेकिन अब राहत के नाम पर सन्नाटा है। गांव वाले शरण स्थलों में ठिठुरती ठंड में संघर्ष कर रहे हैं।

राज्य स्थापना की रजत जयंती के उत्सवों के बीच ज़रा ठहरकर बागेश्वर जिले के जाख-हड़बाड़ गांव का दर्द भी महसूस कर लीजिए। बरसात खत्म हुई तो कैमरों की चमक और नेताओं के काफिले भी गायब हो गए। अब वहां बस दरकी हुई ज़मीन है, टूटी दीवारें हैं और आंसुओं से भीगी उम्मीदें।
13 अगस्त की रात लगातार बारिश ने गैर तोक क्षेत्र में तबाही मचा दी थी। धरती फट गई, सड़कें दरारों में बदल गईं, कई मकान झुक गए और कुछ ढह गए। नौ परिवारों के घर, खेत और बगीचे तबाह हो गए। उस वक्त केंद्रीय मंत्री अजय टम्टा, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य समेत कई अफसर और केंद्रीय पर्यवेक्षक पहुंचे थे। पर अब नवंबर की सर्दी में वहां कोई हालचाल पूछने नहीं आता।
टूटे सपने, अधूरी उम्मीदें
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कमला देवी का सपना था अपना छोटा घर — जो अब सिर्फ मलबा बन चुका है। नंदा बल्लभ की आटा चक्की और ललित सिंह की दुकान मलबे में दबी पड़ी हैं। पेयजल लाइन टूटी है, बिजली के खंभे झुके हुए हैं और गांव धीरे-धीरे नीचे की ओर खिसक रहा है।
बसंती देवी कहती हैं — “चार बच्चों का परिवार है, लेकिन अब सिर छुपाने की जगह नहीं। हर रात डर के साए में गुजरती है।”
जगदीश सिंह सवाल करते हैं — “नेता फोटो खिंचवाकर चले गए, अब कोई देखने नहीं आता कि हम ज़िंदा भी हैं या नहीं।”
शरण स्थलों में नारकीय हालात
प्रशासन ने प्रभावित परिवारों को पंचायत घर, प्राथमिक विद्यालय और आंगनबाड़ी केंद्र में शिफ्ट किया है। मगर वहां न सुविधाएं हैं, न निजता।
दिन में उन्हीं कमरों में बच्चे पढ़ते हैं और रात में पीड़ित वहीं सोते हैं। राहत सामग्री रेडक्रॉस सोसायटी की ओर से मिली, लेकिन “पुरखों की जमीन से उजड़ने का दर्द कोई किट नहीं भर सकती।”
राहत की फाइलें अटकीं, उम्मीदें टूटीं
जिला आपदा कंट्रोल रूम के रिकॉर्ड में नौ परिवारों के नाम दर्ज हैं —
कमला देवी, जगदीश सिंह, गोपाल सिंह, पवन सिंह, पूरन राम, प्रताप राम, रोहित कुमार, नंदा बल्लभ और ललित सिंह।
इन सबको अस्थायी रूप से सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया था।
लेकिन 13 अगस्त को शुरू हुई राहत की फाइलें अब तक गांव नहीं लौटीं।
डीएम, एसडीएम, केंद्रीय टीम सबने दौरा किया, लेकिन तीन महीने बाद भी पुनर्वास की ठोस योजना जमीन पर नहीं उतरी।
“कारगिल में जीत, घर पर हार” – पूर्व सैनिक का दर्द
हड़बाड़ निवासी पूर्व सूबेदार उदय सिंह बताते हैं — “द्रास सेक्टर में पाकिस्तान को धूल चटाई, श्रीलंका में शांति मिशन का हिस्सा रहा, पर अपने ही गांव में बेबस हूं। तीन दशक पहले भी घर टूटा था, तब भी मदद नहीं मिली। अब भी वही कहानी दोहराई जा रही है।”
उनका सवाल गूंजता है — “जब जनता की सुध कोई नहीं लेता, तो अलग राज्य बनने का फायदा क्या हुआ?”
नेताओं और अधिकारियों के बयान
🗣️ सुरेश गढि़या, भाजपा विधायक (कपकोट):
“विस्थापन की प्रक्रिया तेज की जा रही है। प्रभावितों के पुनर्वास के लिए जल्द बैठक बुलाई जाएगी।”
🗣️ यशपाल आर्य, नेता प्रतिपक्ष (कांग्रेस):
“हड़बाड़ की कहानी पूरे राज्य की तस्वीर है। अधिकारी कागजी बातें करते हैं, कोई जवाबदेही नहीं है।”
🗣️ आकांक्षा कोंडे, जिलाधिकारी बागेश्वर:
“विस्थापन प्रक्रिया अंतिम चरण में है। जल्द प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थान पर बसाया जाएगा।”
निष्कर्ष
राज्य स्थापना की रजत जयंती के गीतों और रोशनी के बीच, जाख-हड़बाड़ की अंधेरी रातों में सिसकते परिवार इस बात के प्रतीक हैं कि विकास के नारों के नीचे अब भी दर्द दबा है।
जब कैमरे बंद होते हैं, तो राहत भी खत्म हो जाती है — और पीछे बस रह जाती हैं टूटी दीवारें, ठंडी हवा, और उम्मीदों की आखिरी सांस।







