उत्तराखण्डकुमाऊं,

नैनीताल- यूसीसी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में मांगा जवाब

6 सप्ताह में जवाब दे धामी सरकार…’, UCC को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई पर हाई कोर्ट

नैनीताल न्यूज- हाईकोर्ट ने उत्तराखंड में प्रभावी समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के प्रावधानों की चुनौती देती जनहित याचिकाओं पर केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।

सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से वर्चुअली पेश भारत सरकार के सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इन याचिकाओं को निर्रथक बताते हुए तर्क दिया कि सरकार ने नैतिक आधार पर यह कानून बनाया है। विधायिका को कानून बनाने का अधिकार है। लिव-इन रिलेशनशिप में पंजीकरण से महिलाओं पर अत्याचार में कमी आएगी।मामले में अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद नियत की गई है।

 

 

बुधवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ में डालनवाला देहरादून निवासी अल्मशुद्दीन सिद्दीकी व हरिद्वार निवासी इकरा तथा भीमताल नैनीताल निवासी सुरेश सिंह नेगी की अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई हुई। जिसमें मुस्लिम समुदाय से संबंधित विवाह, तलाक, इद्दत और विरासत के संबंध में समान नागरिक संहिता 2024 के प्रविधानों को चुनौती दी गई है।

 

 

याचिकाकर्ताओं के वकील कार्तिकेय हरि गुप्ता ने खंडपीठ के समक्ष दलील दी कि कुरान और उसकी आयतों में निर्धारित नियम हर मुसलमान के लिए एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है। यूसीसी धार्मिक मामलों के लिए प्रक्रिया निर्धारित करता है, जो कुरान की आयतों के विपरीत है। यूसीसी भारत के संविधान के अनुच्छेद-25 का उल्लंघन करता है। जिसमें धर्म के पालन और मानने की स्वतंत्रता की गारंटी मिली है।

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यूसीसी की धारा-390 मुस्लिम समुदाय के सदस्यों के विवाह, तलाक, विरासत के संबंध में रीति-रिवाजों और प्रथाओं को निरस्त करती है। कुरान की आयतों के विपरीत सिविल कानून मान्य नहींकुरान की आयतों का पालन करना एक मुसलमान के लिए अनिवार्य अभ्यास है और सिविल कानून बनाकर राज्य किसी मुस्लिम व्यक्ति को ऐसा कुछ भी करने का निर्देश नहीं दे सकता जो कुरान की आयतों के विपरीत हो।

 

 

उदाहरण के लिए तलाकशुदा मुस्लिम महिला के लिए इद्दत की अवधि अनिवार्य है, लेकिन यूसीसी में इसे समाप्त कर मुसलमानों के धार्मिक अभ्यास का उल्लंघन किया गया है।

 

 

 

यूसीसी संविधान के अनुच्छेद-245 का भी उल्लंघन करता है, क्योंकि यह एक राज्य कानून है, जिसका क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र है। याचिका में लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण और इसके अभाव में दंडात्मक सजा को भी चुनौती दी है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत मिले निजता के अधिकार का उल्लंघन है। यह भी कहा कि यूसीसी संविधान की प्रस्तावना का भी उल्लंघन करता है, क्योंकि प्रस्तावना आस्था, अभिव्यक्ति, विश्वास और धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देती है।

 

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लिव-इन रिलेशनशिप का प्रविधान असंवैधानिकजनहित याचिका में मुस्लिम के साथ ही पारसी समुदाय की वैवाहिक पद्धति की यूसीसी में अनदेखी किए जाने सहित अन्य प्राविधानों को भी चुनौती दी गई है। याचिका में लिव इन रिलेशनशिप को असंवैधानिक ठहराया है। कहा गया कि जहां सामान्य शादी के लिए लड़के की उम्र 21 व लड़की की 18 वर्ष होनी आवश्यक है जबकि लिव इन रिलेशनशिप में दोनों की उम्र 18 वर्ष निर्धारित की गई है। उनसे होने वाले बच्चे कानूनी बच्चे कहे या वैध माने जाएंगे।

 

 

अगर कोई व्यक्ति अपनी लिव-इन रिलेशनशिप से छुटकारा पाना चाहता है तो वह एक साधारण से प्रार्थना पत्र रजिस्ट्रार को देकर करीब 15 दिन के भीतर अपने पार्टनर को छोड़ सकता है। जबकि विवाह में तलाक लेने के लिए पूरी न्यायिक प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। दशकों के बाद तलाक होता है वह भी पूरा भरण-पोषण देकर। यह राज्य के नागरिकों को जो अधिकार संविधान द्वारा प्राप्त हैं, राज्य सरकार ने उसमें हस्तक्षेप करके उनका हनन किया है।

 

 

रजिस्ट्रेशन न करने पर देना होगा जुर्माना

यूसीसी लागू होने के बाद लोग शादी न करके लिव-इन रिलेशनशिप में ही रहना पसंद करेंगे। क्योंकि जब तक पार्टनर के साथ संबंध अच्छे हों तब तक रहेंगे और नहीं बनने पर छोड़ देंगे। वर्ष 2010 के बाद इसका रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है, न करने पर तीन माह की सजा या 10 हजार का जुर्माना देना होगा।

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इससे तो लिव-इन रिलेशनशिप एक तरह की वैध शादी ही है। कानूनी प्रक्रिया अपनाने में अंतर है। यूसीसी करता है इस्लामिक रीति-रिवाजों को प्रतिबंधितयाचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने यूसीसी अधिनियम पास करते वक्त इस्लामिक रीति रिवाजों व कुरान तथा उसके अन्य प्रविधानों की अनदेखी की है।

 

 

पति की मौत के बाद पत्नी 40 दिन करती है प्रार्थना- कुरान में कहा गया

कुरान के अनुसार, पति की मौत के बाद पत्नी उसकी आत्मा का शांति के लिए 40 दिन तक प्रार्थना करती है। यूसीसी उसको प्रतिबंधित करता है। दूसरा शरीयत के अनुसार संगे संबंधियों को छोड़कर इस्लाम में अन्य से निकाह करने का प्रविधान है लेकिन यूसीसी में इसकी अनुमति नहीं है।

 

शरीयत के अनुसार संपत्ति के मामले में पिता अपनी संपत्ति का सभी बेटों को बांटकर उसका एक हिस्सा अपने पास रखकर जब चाहे दान दे सकता है, यूसीसी उसकी भी अनुमति नही देता। यूसीसी के मुख्य प्रविधान विवाह का अनिवार्य पंजीकरण, पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह प्रतिबंधित, सभी धर्मों में पति-पत्नी को तलाक लेने का समान अधिकार, मुस्लिम समुदाय में हलाला व इद्दत की प्रथा पर रोक, संपत्ति के अधिकार में जायज-नाजायज बच्चों में भेद नहीं आदि में संशोधन किया जाए।