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उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राओं की बढ़ सकती है मुश्किलें, एनसीईआरटी का किताब देने से इनकार

उत्तराखंड में स्कूलों के लिए द्विभाषी किताबें देने से राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने इनकार कर दिया है। ऐसे में अब सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। एनसीईआरटी ने कहा कि राज्यों को किताबे या तो हिंदी में दी जा सकती है या फिर अंग्रेजी में।

वही एक ही किताब में एक प्रश्न हिंदी और दूसरे पर उसके अंग्रेजी अनुवाद की किताब एनसीईआरटी नहीं छापता है। एनसीईआरटी के जवाब से शिक्षा विभाग को झटका लगा है। मालूम हो कि कुछ समय पहले सरकार ने राज्य के सरकारी और अशासकीय स्कूलों के छात्र-छात्राओं को भाषा विषय को छोड़कर बाकी सभी विषयों की किताबों को हिंदी और अंग्रेजी में संयुक्त रूप से प्रकाशित कर देने की घोषणा की है।

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सूत्रों के अनुसार कुछ समय पहले माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने द्विभाषी किताबें मुहैया करने के लिए एनसीईआरटी को पत्र भेजा था। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एनसीईआरटी के जवाब के आधार पर रिपोर्ट बनाकर शासन को भेज दी गई है।

अब शिक्षा विभाग के पास दो ही विकल्प हैं
एनसीईआरटी के जवाब के बाद शिक्षा विभाग के पास दो ही विकल्प बचे हैं। पहले वह छात्रों की मांग के अनुसार हिंदी और अंग्रेजी में प्रकाशित किताबें अलग-अलग मुहैया कराए। दूसरा, शिक्षा विभाग निजी प्रकाशकों से अपने खर्चे पर द्विभाषी किताबें छपवाकर छात्रों को दे।

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वही शासन स्तर पर दोनों विकल्पों का अध्ययन किया जा रहा है। हालांकि दूसरा विकल्प काफी महंगा और अव्यवहारिक भी माना जा रहा है। इससे जहां किताब का आकार और वजन बढ़ जाएगा, तो वही सही-सही अनुवाद और हर पेज की सही-सही विन्यास करना भी कम चुनौती नहीं होगा।

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प्रदेश में 80 लाख से ज्यादा किताबें बांटी जाती है छात्रों को-
उत्तराखंड में पहले से 12वीं कक्षा तक के 10 लाख से ज्यादा छात्र-छात्राओं को सरकार मुक्त किताबें देती हैं। पिछले साल सरकार ने राजकीय के साथ अशासकीय स्कूलों को भी शत प्रतिशत रूप में इस योजना में शामिल कर लिया है। उत्तराखंड में हर साल करीब 80 लाख किताबों की जरूरत होती है। इनके प्रकाशन पर 22 करोड रुपए से ज्यादा का खर्च आता है।