उत्तराखंड के इन स्थानों पर भी मडरा सकता है खतरा, पढ़िए भू- वैज्ञानिकों की ग्राउंड रिपोर्ट
उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में घरों, रोड़ों, खेतों और विभिन्न स्थानों में दरारें पड़ गई है, चिंता की बात यह है कि जोशीमठ की तरह उत्तराखंड के कई स्थानों में भू धसाव का खतरा बना हुआ है विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जोशीमठ की यह घटना कोई अकेली घटना नहीं है।
यह अनदेखे पर्यावरणीय परिणामों में से एक है, इंडिया टुडे रिपोर्ट के अनुसार जोशीमठ भी इसी तरह की स्थिति का सामना कर रहा है, हाल के दिनों में लगातार बारिश और बाढ़ के कारण शहर की जमीन से अंदर बहुत कमजोर हो गई है और मानव गतिविधियां भी इसके मुख्य कारणों में से एक है।
जोशीमठ भू धंसाव मामले में मैन सेंट्रल थ्रस्ट MCT- 2 का दोबारा शुरू होना मुख्य कारण माना जा रहा है, जियोलॉजिकल कारणों की वजह से भारतीय प्लेट में हिमालय के साथ साथ यूरेशियन प्लेट को नीचे धकेल दिया है, कुमाऊं विश्वविद्यालय में भूवैज्ञानिक के प्रोफ़ेसर बहादुर सिंह कोटलिया कहते हैं कि यह MCT- 2 जॉन फिर से सक्रिय हो गया है।
जोशीमठ में जमीन के डूबने का कारण बन रहा है और कोई भी भूवैज्ञानिक यहां अनुमान नहीं लगा सकता है कि यह दोबारा कब सक्रिय होगा, दो दशकों से सरकार को चेतावनी दी जा रही है लेकिन इस बात को हमेशा से ही नजरअंदाज किया जाता रहा है, वे कहते हैं कि कोई भी प्रकृति से नहीं लड़ सकता और ना ही जीत सकता है।
चेतावनी दी गई है कि जोशीमठ इस तरह की अकेली घटना नहीं है जोशीमठ की तरह नैनीताल में भी पर्यटकों के दबाव के साथ-साथ मानव रहित निर्माण कार्य तेजी से हो रहे हैं यह शहर कुमाऊं लघु हिमालय में स्थित है और 2016 की एक रिपोर्ट बताती है कि टाउनशिप का आधा क्षेत्र भूस्खलन से उत्पन्न मलबे से ढका हुआ है, डॉ कोटलिया ने पिछले साल के अंत में जारी अध्ययन में बताया था कि 2009 बलियानाला भूस्खलन शहर के लिए चिंताजनक है, निष्कर्ष यह निकला था कि भूस्खलन कई कारणों से शुरू हुआ था,
पहला, ढलान पैटर्न तबाही के लिए मूलभूत कारण प्रतीत होता है, क्योंकि अधिकांश क्षेत्र में बहुत अधिक ढलान है।
दूसरा, चट्टान के प्रकार भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं कहा है कि किसी भी भूवैज्ञानिक दोष या थ्रस्ट को दोबारा शुरू होने से नहीं रोका जा सकता, यह प्राकृतिक प्रक्रिया है और क्षेत्र के कमजोर क्षेत्रों को नुकसान पहुंचाती है, केवल कुछ ही विकल्पों के साथ बचा जा सकता है और सबसे महत्वपूर्ण विकल्प बहुत उच्च तकनीक इंजीनियरिंग का उपयोग करके ऐसी आपदाओं से बचाव संभव है।
2016 में वाडिया इंस्टीट्यूट आफ जियोलॉजी एंड ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा नैनीताल के आस पास के एक भूवैज्ञानिक शोध में भी इसी तरह का निष्कर्ष निकाला था, अध्ययन ने पुष्टि की कि इस क्षेत्र में मुख्य रूप से शेल और स्लेट के साथ चूना पत्थर शामिल है, जो नैनीताल झील फाल्ट की वजह से कमजोर है और चट्टानों और ऊपरी मिट्टी में बहुत कम ताकत है।
जो हम जोशीमठ में देख रहे हैं वह बहुत आसानी से और जल्द ही नैनीताल, उत्तरकाशी और चंपावत में दोहराया जा सकता है इससे इनकार नहीं कर सकते, जो भूकंपीय गतिविधि, हार्ड लाइन के पुनरसक्रियन और भारी आबादी और निर्माण गतिविधि भी चपेट में आने के लिए अति संवेदनशील है।
डॉ कोटलिया का कहना है कि जोशीमठ भू धसाव जैसी स्थिति उत्तरकाशी, नैनीताल, चंपावत में भी देखने को मिल सकती है, क्योंकि हिमालय में निरंतर भूगर्भीय हलचल हो रही है, आबादी का बढ़ता दबाव और निर्माण से पर्यावरण पर भी असर पड़ रहा है, इन शहरों की नींव मजबूत नहीं होने की वजह से भूस्खलन और भू धसाव के लिहाज से अति संवेदनशील है
उत्तराखंड के संवेदनशील क्षेत्र
पूर्वी हिमालय क्षेत्रों में दार्जिलिंग, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में जम्मू कश्मीर, लद्दाख के कई इलाके भूस्खलन के लिए आज बेहद संवेदनशील है जोशीमठ के अलावा नैनीताल में माल रोड के धसने का मामला भी चर्चाओं में रहा, धारी देवी मंदिर के पास कलियासौड़, सिरोबगड़ मैं भूस्खलन जोन का ट्रीटमेंट सफल नहीं रहा है, बार बार सड़क पर मलबा आने से अब अलकनंदा की दूसरी और सड़क बनाई जा रही है, केदारघाटी में बांसवाड़ा और बद्रीनाथ के पास लांमबगढ़ भी संवेदनशील है।
जोशीमठ में दरार ग्रस्त घरों को ध्वस्त करने की सिफारिश
आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने जोशीमठ की अध्ययन रिपोर्ट सरकार को सौंप दी, सीना की अध्यक्षता में विशेषज्ञ दल ने 5 और 6 जनवरी को जोशीमठ के प्रभावित क्षेत्रों का मुआयना किया था, सरकार को कुछ अहम सुझाव दिए हैं, इसके तहत सर्वाधिक प्रभावित मकानों को ध्वस्त कर मलबे का निस्तारण करने की बात कही,
संवेदनशील क्षेत्रों से लोगों को सुरक्षित स्थान पर विस्थापित करने को कहा गया है, पवई क्षेत्र का भूगर्भीय सर्वेक्षण धारण क्षमता की जांच की पैरवी की है, इसके साथ ही ड्रेनेज, स्रोत, लोकल वाटर लेबल शादी के लिए हाइड्रोलॉजिकल का सुझाव दिया है, भवनों को नुकसान का आकलन और सुरक्षा के लिए रिट्रोफिटिंग की संभावनाएं तलाशने का सुझाव भी दिया है, रिपोर्ट के बाद सरकार इस मामले में आगे ठोस कदम उठा सकती है।