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उत्तराखंड में भूकंप से बचाव के लिए प्रदेशव्यापी मॉक ड्रिल शुरू, पहली बार डिजिटल ट्विन तकनीक का उपयोग

देहरादून/हल्द्वानी। भूकंप से बचाव एवं त्वरित आपदा प्रतिक्रिया को मजबूत करने के उद्देश्य से आज पूरे उत्तराखंड में प्रदेशव्यापी मॉक ड्रिल आयोजित की गई। पहाड़ से मैदान तक 80 से अधिक स्थानों पर एक साथ यह अभ्यास किया गया। खास बात यह रही कि इस बार डिजिटल ट्विन तकनीक का प्रयोग कर वास्तविक परिस्थितियों जैसी स्थिति में बचाव कार्य का अभ्यास कराया गया।

 

 

सुबह 10 बजे थराली, हरिद्वार और देहरादून सहित कई जिलों में मॉक ड्रिल की शुरुआत हुई। एसडीआरएफ, डीडीआरएफ, एनसीसी, होमगार्ड, पीआरडी, पुलिस और प्रशासन की टीमें अभ्यास में शामिल रहीं। अभ्यास के दौरान मौके पर मौजूद टीमों को आपातकालीन कॉल प्राप्त होने से लेकर घटनास्थल पर रेस्क्यू ऑपरेशन तक की संपूर्ण प्रक्रिया का परीक्षण किया गया।

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🔹 डिजिटल ट्विन तकनीक बनी आकर्षण का केंद्र

मॉक ड्रिल में पहली बार डिजिटल ट्विन तकनीक का उपयोग कर किसी स्थान या भवन की वर्चुअल प्रतिकृति तैयार की गई, जिससे आपदा के दौरान बिल्कुल वास्तविक परिस्थितियों का सिमुलेशन संभव हुआ। इस तकनीक से यह परीक्षण किया गया कि भूकंप आने की स्थिति में क्या-क्या चुनौतियाँ सामने आएंगी और विभिन्न एजेंसियाँ कितनी जल्दी और प्रभावी तरीके से प्रतिक्रिया दे पाएंगी।

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🔹 मॉक ड्रिल के दौरान अपनाए गए परिदृश्य

आपदा प्रतिक्रिया की तैयारी परखने के लिए कई सीन रचे गए—

बहुमंजिला आवासीय भवन के ढहने का अभ्यास

अस्पताल भवन के आंशिक गिरने की स्थिति

स्कूल व कॉलेज क्षतिग्रस्त होने से छात्रों के फँसने का सीन

घायलों के ट्राइएज एवं तत्काल प्राथमिक उपचार

भीड़ नियंत्रण एवं सुरक्षित निकासी

 

 

विभिन्न विभागों की टीमें मौके पर पहुंचकर घायलों को सुरक्षित बाहर निकालने, प्राथमिक उपचार उपलब्ध कराने और प्रभावित क्षेत्रों को सुरक्षित घोषित करने की प्रक्रिया से गुज़रीं।

 

 

🔹 संवेदनशील है उत्तराखंड

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विशेषज्ञों के मुताबिक उत्तराखंड भूकंप, भूस्खलन, बाढ़ और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माना जाता है। इसलिए समुदायों का क्षमता विकास, निरंतर प्रशिक्षण और त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली का मज़बूत होना बेहद आवश्यक है। इसी उद्देश्य से राज्य में समय-समय पर इस प्रकार की मॉक ड्रिल आयोजित की जाती है।

 

 

मॉक ड्रिल के दौरान प्रशासनिक अधिकारियों ने प्रतिक्रिया समय, संसाधनों की उपलब्धता और समन्वय पर पैनी नज़र रखी, ताकि वास्तविक आपदा की स्थिति में राहत एवं बचाव कार्य और भी अधिक प्रभावी तरीके से किया जा सके।