हल्द्वानी के इस क्षेत्र में निजी जमीन पर बनी अवैध कॉलोनी, 150 से अधिक परिवारों का कब्जा, क्या यहां भी चलेगा बुलडोजर?
- निजी जमीन पर अवैध कालोनी बनाकर 111 में से 109 मुस्लिमों के नाम की रजिस्ट्री
- पंत फार्म का नाम बदलकर हुआ अंसारी कालोनी, 150 से अधिक मुस्लिम परिवार बसे
हल्द्वानी न्यूज़- गौलापार में सरकारी व निजी जमीन पर एक और ‘बनभूलपुरा’ की बसासत शुरू हो चुकी है। ग्राम देवला तल्ला में निजी जमीन पर अवैध कालोनी बनाकर कई आशियाने बन चुके हैं। प्राधिकरण के नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई गई हैं। वहीं, खेती के लिए दी गई वन भूमि पर सैकड़ों मुस्लिमों के बसने क्रम अब भी जारी है। इतना सब होने के बाद न तो प्रशासन चेत रहा, न ही वन विभाग के अधिकारी। केवल कागजी औपचारिकता की जा रही है।
हल्द्वानी से गौलापार को जाते समय पुल पार करते ही दो सड़कें हैं। एक सड़क स्टेडियम व दूसरी सड़क ग्राम देवला तल्ला को जोड़ती है। इसी देवला तल्ला गांव में एक व्यक्ति ने वर्ष 2018 के बाद से अवैध प्लाटिंग शुरू की। अब तक करीब 300 से अधिक प्लाट काटे जा चुके हैं और 10 से अधिक मकान बनकर खड़े हो गए हैं।
गौलापार निवासी आरटीआइ एक्टिविस्ट रविशंकर जोशी की ओर से मांगी गई जानकारी के अनुसार, वर्ष 2022 में इस जमीन पर 111 रजिस्ट्री हुई, जिसमें 109 मुस्लिम समुदाय के नाम हुई। 49 मुस्लिमों ने पहली बार उत्तराखंड में जमीन खरीदी। तब रविशंकर जोशी ने इसकी शिकायत प्राधिकरण से की थी।
प्राधिकरण न्यायालय ने अगस्त 2023 में बिना नक्शा पास कराए जमीन पर प्लाटिंग करने पर जमीन सील करने, दाखिल खारिज रद करने व भवनों को ध्वस्त करने के निर्देश दिए थे, मगर छह माह बाद भी ध्वस्तीकरण की कार्रवाई नहीं हुई है।
वहीं, अब बात करते हैं अंसारी कालोनी की। ये कालोनी कभी पंत फार्म के नाम से जानी जाती थी। वन विभाग के रिकार्ड के अनुसार, वर्ष 1978 में सरकार ने 64 लोगों को 62 हेक्टेयर जमीन 90 साल की लीज पर खेती के लिए दी थी। जमीन का नवीनीकरण 30 साल में होना था, मगर वर्ष 2008 के बाद जमीन का नवीनीकरण नहीं हुआ है। महत्वपूर्ण बात ये है कि इस जमीन पर भवन बनाने की अनुमति किसी को नहीं थी, लेकिन यहां पर मुस्लिम समुदाय के 150 से अधिक लोगों ने घर बना लिए हैं।
जिस जमीन पर प्लाटिंग हुई है, उसका विनियमितीकरण एक व्यक्ति के नाम से हुआ था। प्लाटिंग करने वाले ने जमीन का बड़ा हिस्सा खरीदा। फरवरी 2023 से इस जमीन की खरीद-फरोख्त पर रोक लगी है। आरटीआइ एक्टिविस्ट का आरोप है कि दाखिल खारिज के बाद जमीन की रजिस्ट्री भी होती रही।
अंसारी कालोनी में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग ऊर्जा निगम को स्वामित्व का कोई अभिलेख नहीं दिखा पाए। इसलिए ऊर्जा निगम ने रेगुलेटरी कनेक्शन के आधार पर तीन गुना अधिक सिक्योरिटी मनी जमा कराकर 60 से अधिक लोगों को बिजली का कनेक्शन दिया है।
ग्राम देवला तल्ला में जिस जमीन पर प्लाटिंग हुई है, वहां रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि उसने 100 स्क्वायर फीट का प्लाट दो साल पहले 15 लाख में खरीदा था। इस जमीन के रेट अब बढ़कर दो हजार से 25 सौ रुपये स्क्वायर फिट हो चुके हैं। यहां जिन 10 लोगों के घर हैं, वह सभी मुस्लिम समुदाय के हैं।
कभी पंत फार्म और अब मलिक कालोनी की जमीन 100 रुपये के स्टांप पेपर पर बेची गई है। एक प्लाट खरीदने में लोगों ने 29 लाख रुपये तक खर्च किए हैं। वन विभाग के रिकार्ड के अनुसार, राम प्रकाश ने इंतियात को 22.25 लाख में, सलीम अख्तर ने गुलशन को चार लाख रुपये में जमीन बेची। ऐसे ही कई अनगिनत और उदाहरण हैं।
वन विभाग ने ऊर्जा निगम व जल संस्थान को पत्र भेजकर जानकारी मांगी थी कि वन भूमि पर काबिज लोगों को किस आधार पर बिजली व पानी के कनेक्शन दिए गए हैं? इन लोगों ने क्या दस्तावेज जमा किए थे, मगर अभी तक यह जवाब नहीं मिल सका।
वन भूमि से जुड़े निर्माण को चिह्नित किया जा रहा है। इसके बाद नोटिस भेजने की कार्रवाई की जाएगी। वहीं, नए निर्माण के विरुद्ध कार्रवाई की तिथि जल्द तय होगी। – हिमांशु बांगरी, डीएफओ
इस जमीन के बारे में हमें जानकारी नहीं है, मगर किसी विभाग की ओर से तहरीर दी जाती है तो हम उस पर नियमानुसार कार्रवाई करेंगे। – प्रह्लाद नारायण मीणा, एसएसपी
अवैध भवनों को ध्वस्त करने के आदेश यथावत हैं। इस मामले में कार्रवाई की जाएगी। बनभूलपुरा से अतिक्रमण हटाने के कारण कार्रवाई में विलंब हुआ है। – पंकज उपाध्याय, सचिव, जिला विकास प्राधिकरण
किसी भी व्यक्ति को बिजली से वंचित नहीं किया जा सकता। अंसारी कालोनी में जिन लोगों को बिजली का कनेक्शन दिया है, उनसे तीन गुना अधिक सिक्योरिटी ली गई है। – नीरज पांडे, एसडीओ, ऊर्जा निगम
प्रशासनिक अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों व प्रापर्टी डीलरों ने मिलीभगत से उत्तराखंड के कई पहाड़ी और ग्रामीण क्षेत्र में हजारों बाहरी लोगों की घुसपैठ करा दी है। इन घुसपैठियों को बिजली-पानी-सड़क सहित सभी सुविधाएं दी गई हैं। इन बाहरी लोगों की घुसपैठ से उत्तराखंड के शांत पहाड़ी और ग्रामीण क्षेत्र अब अतिसंवेदनशील क्षेत्र में बदल चुके हैं। डेमोग्राफी में बदलाव की शिकायत शासन-प्रशासन से कई बार की और जांच समिति भी गठित हुई, पर जिला प्रशासन वर्षों से जांच पर कुंडली मारकर बैठ गया है। – रविशंकर जोशी, आरटीआइ एक्टिविस्ट