उत्तराखण्डगढ़वाल,

उत्तराखंड – यहां मछलियां पकड़ने नदी में उतरे हजारों ग्रामीण, ढोल-नगाड़ों पर झूमे, जाने इसकी वजह, पढ़े पूरी खबर।

उत्तराखंड के टिहरी जिले में जौनपुर क्षेत्र का ऐतिहासिक राज मौण मेला धूमधाम से मनाया गया। राजशाही के जमाने से मनाए जाने वाले मेले में बृहस्पतिवार सुबह बड़ी संख्या में लोग ढोल-दमाऊं और रणसिंघा के साथ अगलाड़ नदी में पहुंचे। वहां मेलार्थियों ने पूजा-अर्चना करने के बाद नदी में टिमरू का पाउडर उड़ेला और मछली पकड़ने के लिए कूद पड़े। ढोल नगाड़ों की थाप पर ग्रामीणों ने लोकनृत्य भी किया।

जौनपुर के ऐतिहासिक मौण मेले में लोग बृहस्पतिवार सुबह करीब 10 बजे से जुटने शुरू हो गए थे। परंपरा के मुताबिक टिमरू का पाउडर बनाकर मौण डालने की जिम्मेेदारी हर साल अलग-अलग पट्टी के लोगों को दी जाती है।

यह भी पढ़ें 👉  लालकुआँ- चाय की दुकान में अवैध रूप से शराब परोस रहे दुकान स्वामी को लालकुआँ पुलिस ने अवैध देशी शराब के साथ किया गिरफ्तार

इस साल लालूर पट्टी के लोगों ने पाउडर बनाया। देवन, घंसी, खडसारी, मीरागांव, डियागांव, छानी, टिकरी, ढकरोल व सल्ट गांव के ग्रामीणों ने करीब 29 कट्टे टिमरू का पाउडर तैयार किया और इसकी तैयारी काफी दिन पहले शुरू कर दी गई थी। ढोल-दमाऊं और रणसिंघे के साथ पहुंंचे लोगों ने पहले अगलाड़ नदी में पूजा की और उसके बाद उन्होंने नदी में मौण डालने की परंपरा निभाई। उसके बाद बड़ी संख्या में पहुंचे बच्चे, बड़े और बुजुर्ग मछली पकड़ने नदी में कूद पड़े।

मेले में जौनपुर सहित जौनसार, उत्तरकाशी और मसूरी क्षेत्र से लगे करीब 114 गांव के लोग शामिल होते हैं। घंसी के प्रधान जगमोहन सिंह कंडारी, बलवीर सिंह मलियाल, शूरवीर सिंह, रणवीर सिंह ने बताया कि मेले में बड़ी संख्या में बाहर के पर्यटक भी यहां पहुंचे थे।

यह भी पढ़ें 👉  बिंदुखत्ता में होली की धूम, संजय नगर 2 में महिला कमेटी द्वारा होली मिलन कार्यक्रम का आयोजन

ऐतिहासिक मौण मेले की शुरुआत 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने की थी। तब से जौनपुर में निरंतर इस मेले का आयोजन किया जाता है। क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि इसमें टिहरी नरेश स्वयं अपने लाव लश्कर एवं रानियों के साथ मौजूद रहते थे। मौण टिमरू के तने की छाल को सुखाकर तैयार किए गए महीन चूर्ण को कहते हैं।

टिमरू का उपयोग दांतों की सफाई के अलावा कई अन्य औषधियों में किया जाता है। अगलाड़ नदी के पानी से खेतों की सिंचाई भी होती है। मछली मारने के लिए नदी में डाला गया टिमरू का पाउडर पानी के साथ खेतों में पहुंचकर चूहों और अन्य कीटों से फसलों की रक्षा करता है।

यह भी पढ़ें 👉  बिंदुखत्ता के प्रमोद कॉलोनी के पुत्र ने क्षेत्र का नाम किया रोशन, राहुल बने आईडीबीआई बैंक में मैनेजर

जिस टिमरू पाउडर को ग्रामीण मछली पकडऩे के लिए नदी में डालते हैं, उसको बनाने के लिए गांव के लोग एक माह पूर्व से तैयारी में जुट जाते है। प्राकृतिक जड़ी बूटी और औषधीय गुणों से भरपूर टिमरू के पौधे की तने की छाल को ग्रामीण निकालकर सुखाते हैं फिर छाल को ओखली या घराट में बारीक पीसकर पाउडर तैयार करते हैं। टिमरू पाउडर के नदी में पडऩे के बाद कुछ देर के लिए मछलियां बेहोश हो जाती हैं। पाउडर से मछलियां मरती नही हैं।