मानसून बना मुसीबत: उत्तराखंड के दूरस्थ गांवों में गैस सिलेंडर 2000 रुपये चीनी 60 रूपये किलो में, जरूरी सामान महंगा

चमोली न्यूज- उत्तराखंड में मानसून की बारिश ने पहाड़ों की जीवन रेखा मानी जाने वाली सड़कों को बुरी तरह प्रभावित किया है। दूरस्थ पर्वतीय गांवों में आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। मुख्य सड़क मार्गों से कटे गांवों तक जरूरी सामान पहुंचाना मुश्किल हो गया है, जिससे महंगाई आसमान छू रही है।
चमोली, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जैसे सीमांत जिलों के कई गांवों में खाद्यान्न, गैस सिलेंडर, नमक, चीनी और अन्य जरूरी वस्तुएं दुगने-तिगुने दामों में मिल रही हैं। कई क्षेत्रों में एक गैस सिलेंडर के लिए लोगों को 2000 रुपये तक खर्च करने पड़ रहे हैं।
📍 43 दिन से बंद है निजमूला घाटी की सड़क
चमोली जिले की दूरस्थ निजमूला घाटी के गांव पाणा, गौणा और ईरानी की सड़क पिछले 43 दिनों से बंद है। यहां खाद्यान्न और रसोई गैस जैसे जरूरी सामान की सप्लाई घोड़े-खच्चरों के माध्यम से की जा रही है।
ईरानी के पूर्व ग्राम प्रधान मोहन सिंह नेगी ने बताया कि सामान्य दिनों में गैस सिलेंडर पगना गांव तक पहुंचाने में भाड़ा मिलाकर 1200 रुपये लगता था। अब दूरी बढ़ने और जोखिम बढ़ने के कारण खच्चर वाले 600 रुपये अतिरिक्त ले रहे हैं, जिससे 942 रुपये के सिलेंडर के लिए 2000 रुपये चुकाने पड़ रहे हैं।
🚑 आपातकाल में और बढ़ जाती है मुश्किल
इन गांवों में सिर्फ महंगाई ही नहीं, बल्कि आपातकालीन स्थिति भी बड़ी चुनौती बन जाती है। बीमारी या इमरजेंसी में इलाज के लिए टूटी हुई सड़कों से होकर पैदल या खच्चर से जाना पड़ता है।
📦 बरसात से पहले स्टॉक करते हैं ग्रामीण
इन दुर्गम क्षेत्रों में ग्रामीण बरसात से पहले ही घरों में राशन और जरूरी सामान का स्टॉक कर लेते हैं। लेकिन अगर बरसात के बीच में गैस, नमक, तेल या चीनी जैसी चीजें खत्म हो जाएं, तो उन्हें बाजार मूल्य से दोगुना या अधिक दाम देना पड़ता है।
🗺️ रसोई गैस सप्लाई से अब भी वंचित कई गांव
राज्य के पर्वतीय जिलों जैसे पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, टिहरी और चमोली में अभी भी कई गांव ऐसे हैं, जहां रसोई गैस की सीधी सप्लाई नहीं है। वहां आज भी लोग लकड़ी पर खाना पकाने को मजबूर हैं या फिर खच्चरों से गैस मंगवाते हैं।