उत्तराखण्ड

रतन टाटा ने उत्‍तराखंड को विश्‍व में दिलाई थी पहचान, यहीं बनी थी उनकी ‘ड्रीम कार’

  • सबसे सस्ती लखटकिया कार के रूप में हुई थी प्रसिद्ध
  • तब सिडकुल पंतनगर स्थित प्लांट में पहुंचे थे रतन टाटा

रुद्रपुर न्यूज़– करोड़ों देशवासियों की आखें नम कर रतन टाटा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। बुधवार रात को उन्होंने मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनसे जुड़ी स्मृति में ऊधम सिंह नगर में बनी टाटा की नैनो का भी जिक्र आता है।

 

यह कार न केवल आम आदमी के कार में चढ़ने के सपने को साकार करने वाली थी, बल्कि इसने आटो मोबाइल्स के क्षेत्र में देवभूमि को विश्व में पहचान भी दिलाई थी। कार का उत्पादन देखने तब स्वर्गीय रतन टाटा सिडकुल पंतनगर स्थित अपने टाटा मोटर्स प्लांट में आए थे। बाद में उन्होंने अपने तीन वेंडर पार्क का भी जायजा लिया था। उनके स्वभाव और आचरण देखकर प्लांट के अधिकारी व कर्मचारी भी मुरीद हो गए थे।

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रतन टाटा की पश्चिम बंगाल के सिंगूर प्लांट में नैनो कार बनाने की योजना थी। अक्टूबर, 2008 में विवाद हुआ तो यह ड्रीम प्रोजेक्ट खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा था। उन्होंने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए देश दुनिया की सबसे सस्ती लखटकिया कार यानी नैनो कार का उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर के स्टेट इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इंडस्ट्रीज आफ कारपोरेशन फार उत्तराखंड पंतनगर यानी सिडकुल में मिनी ट्रक यानी छोटा हाथी बनाने वाली टाटा मोटर्स फैक्ट्री में उत्पादन करने का मन बनाया था।

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प्रोजेक्ट को धरातल पर लाने में वह खुद जुट गए थे। वह विशेष विमान से 16 अप्रैल 2009 में प्लांट में पहुंचे। यहां पर उन्होंने नैनो कार की गुणवत्ता और उत्पादन की जानकारी ली। उन्होंने जुलाई 2009 में अशोक विचारे को पहली कार की चाबी सौंपी। विचारे ने पहली कार खरीदी थी। इसके बाद बाइक पर चढ़ने वालों का कार में चढ़ने का सपने पूरा होने लगा।

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ऊधम सिंह नगर की आटो मोबाइल्स सेक्टर में पहचान तेजी से बनी। बाद में वर्ष 2010 में गुजरात के साणंद स्थित टाटा मोटर्स प्लांट में नैनो कार बनने लगी। आज भी जिनके पास नैनो कार है, वह गर्व महसूस करते हैं।

 

पूर्व कैबिनेट मंत्री व किच्छा विधायक तिलकराज बेहड़ बताते हैं कि जब एनडी तिवारी प्रदेश के सीएम थे, तब उनके साथ रतन टाटा से मुलाकात हुई थी। रतन टाटा सरल स्वभाव व अच्छे आचरण के थे। अन्य उद्योगों से हटकर उनकी सोच रही। वह आम आदमी की सोच को भी समझते थे।